महिला दिवस पर महिलायें ले खुद से एक वादा नहीं जियेगी वो समझौतों के साथ
हर साल महिला दिवस आता है लोग सिर्फ एक दूसरे को अच्छे अच्छे मैसेज देते है या कुछ जगहों पर कार्यकर्मो का आयोजन होता है और फिर बात ख़तम। क्या हुआ महिला दिवस के आयोजन का ? हम महिलाओं के जिंदगी में क्या फर्क आया ? कुछ नहीं। कुछ नहीं बदलेगा जब तक हम नहीं चाहेंगे क्योकि बदलाव करवाने से पहले बदलाव हमे अपने अंदर लाना होगा।
मैं जैसी दिखती हूँ ,वैसी ही हूँ। मैं अपने आप को ऐसे ही अच्छी लगती हूँ। मुझे किसी के लिए नहीं बदलना नहीं है।

मुझे इस बात से फर्क नहीं पड़ता की मेरे दोस्त शादीशुदा है या कुँआरे या तलाकशुदा, मै अपनी कोई भी राय इन आधार पर नहीं बनाऊँगी। मेरे दोस्त यदि मुझे समझते है और हर परिस्थिति में मेरा साथ देते है तो वो अच्छे है।
मैं अपने रिश्ते अपने परिवार वालों के साथ और अपने मित्रों साथ खुद बनाउंगी इसपर मेरे परिवार वाले मुझ पर अपनी मर्जी नहीं थोप सकेंगे।

मै कितना कमाती हूँ और अपनी कमाई का क्या करती हूँ ये मेरा निजी विषय है दुसरो को इस बारे में बोलने का कोई हक़ नहीं।
मैं अपनी नजर में सफल होना चाहती सबसे पहले चाहे घर में हो या करियर में।
मैं अपनी खुशियों का खुद ही हिसाब किताब नहीं रखती हूँ कभी कभी मुझे रोना भी अच्छा लग सकता है।
मैं अपने परिवार और आसपास की स्त्रियों को गर्व से देखती हूँ और अपने आप को सबसे पहले।
No comments:
Post a Comment